रामजन्म और रेणुका माता अद्वितीय संबंध

रामजन्म मनाते समय श्रद्धावानों के मन में यही भाव होता है कि ‘मेरा राम’ मेरे जीवन में प्रकट हुआ है। इस राम को कौन जन्म देता है? राम को कौन प्रकट करता है? बच्चे को कौन प्रकट करता है? सकल स्तर पर इसका जवाब है - 

माता बच्चे को जन्म देती है। माँ की प्रसूति होती है और बच्चे का जन्म होता है।


अर्थात् “बच्चा माँ को जन्म देता है” यह भी सच है क्यों की बच्चा वास्तव में आ जाने से ही वह माँ बन जाती है, बच्चे के जन्म के साथ माँ का भी जन्म होता है। हम थोडा सरलता से सोचते हैं। हम यहाँ समझ गए हैं कि राम को प्रकट करनेवाली राम की माता ही है।

यहाँ पर हमें दैनिक प्रत्यक्ष के कार्यकारी संपादक श्री अनिरुद्ध बापू की "तुलसीपत्र" इस अग्रलेख श्रृंखला के संदर्भों का अभ्यास करना होगा। वहाँ पर आदिमाता चण्डिका उसका दरबार बुलाती है और महाविष्णु को परशुराम, राम और कृष्ण इन अवतारों को धारण करने का आदेश देती है। महामत्स्य से लेकर बटुवामन तक के अवतारोंमें महाविष्णु लीला करने के लिए अवतार कार्य पर्याप्त प्रकट हुआ होता है। वह मनुष्य शिशु की तरह माता के पेट में से  मनुष्य जन्म नहीं लेता है।

महाविष्णु का छठा अवतार परशुराम यह ऐसा पहला अवतार है, जिस अवतार में वह मनुष्यमर्यादाओं का सम्पूर्ण पालन करके मनुष्य शिशु की तरह जन्म लेने वाला होता है। आदिमाता के संकल्प अनुसार स्वयं भगवनकिरातरूद्र और माता शिवगंगागौरी परशुराम के माता पिता बनकर अवतीर्ण होने वाले रहते हैं।

सत्ययुग में अत्रि और अनसूया रूप में आदिमाता चण्डिका ने ही पृथ्वी पर मनुष्यत्व धारण किया था। ‘‘यही मनुष्यत्व आपको मनुष्यजीवन जीते समय मार्गदर्शक साबित होता है’’ ऐसा आदिमाता उस समय किरातरुद्र और शिवगंगागौरी से कहती है।

“मेरे अत्रिस्वरूप का अग्नि जमदग्नि के पास ‘पवित्र क्रोध’ बनकर आएगा और मेरे अनसूयास्वरूप का धर्माचरण रेणुका के पास ‘पातिव्रत्य’ व ‘पराक्रमविद्या’ बनकर आएगा”, ऐसा भी आदिमाता उस समय कहती है।

सारांश, ‘परशुराम’ इस अवतार में यह महाविष्णु मानवी माता और मानवी बालक इनके प्रेम का, प्रत्यक्ष मानवी देह धारण करके अनुभव करता है। मानवी माता की वत्सलता का वह इसी अवतार में स्वयं मनुष्यदेह धारण करके अनुभव करता है, मनुष्य की तरह जीवन के भाव-स्थित्यन्तरों का अनुभव भी करता है।

आगे राम अवतार में वह कौशल्या के पेट से जन्म लेता है, कृष्ण अवतार में देवकी-यशोदा के वात्सल्य का अनुभव करता है। वह अपनी मानवी माताओं पर भी बहुत प्रेम करता है, लेकिन फिर भी सर्वप्रथम मानवी माता-मानवी बालक इस परमपवित्र रिश्ते का अनुभव इस महाविष्णु ने ‘परशुराम’ बनकर ही किया है, इसे भूलना नहीं चाहिए।

इसी वजह से रामनवमी को, महाविष्णु के सातवें अवतार ‘राम’ के जन्म के कार्यक्रम से पहले ‘श्री अनिरुद्ध उपासना फाउंडेशन’ की ओर से प्रेमस्वरूप परमात्मा की प्रथम मानवी माता का अर्थात रेणुका देवी का पूजन बड़े उत्साह से किया जाता है।

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