रेणुका माता पूजन - Renuka Mata Pujan

रेणुकामाता

रामनवमी के उत्सव में उत्सव स्थल पर रेणुकामाता के आगमन  की प्रतीक्षा  श्रद्धावान करते रहते हैं। तांदळा के स्वरुप में  रेणुकामाता का आगमन होते ही माता का जयजयकार किया जाता है और रेणुकामाता का औक्षण करके मंगलवाद्यों की ध्वनि में उत्साह से स्वागत किया जाता है। रेणुकामाता को विराजमान होने के लिए बनाए गए खास मंच पर माता को सम्मानपूर्वक स्थानापन्न किया जाता है।

रेणुकामाता का षोडशोपचार के साथ पूजन किया जाता है। साथ ही माता पर अभिषेक भी किया जाता है। अभिषेक के लिए उपयोग किए जाने वाले विशेष अभिषेकपात्र  की गाय के थन जैसी संरचना होती है। थननलिका जैसी बहुतसी नलिकाएँ उसमें होती हैं। उसमें से कई धाराएँ बरसती हैं और उनके द्वारा रेणुकामाता के तांदळा पर सहस्त्रधारा-अभिषेक किया जाता है, जिसे देखना यह एक मन को प्रसन्न करने वाला अनुभव होता है। इन पूजा की विधियों को देखते समय, रेणुकामाता को देखते समय जननी-प्रेम उभर आता है।


स्वयं बापू रेणुकामाता की आरती करते हैं और बापू को रेणुकामाता की आरती करते समय देखना, बापू के चेहरे पर विलसने वाले अतिउच्च मातृप्रेम का अनुभव करना जीवन की सबसे बड़ी बात है।

बापू का मातृप्रेम जी भर के देखने का यह अनुभव भी, हमारे जीवन में रेणुका-परशुराम को, आदिमाता चण्डिका को और उसके पुत्र त्रिविक्रम को सक्रिय करने के लिए काफी है।

रेणुकामाता का अर्चन इस तरह से संपन्न होने के बाद ही फिर रामजन्म होता है और समारोह के अन्य कार्यक्रमों का शुभारम्भ होता है। ‘मातृत्व ही सर्वप्रथम’ यह प्राथमिकता (प्रायॉरिटी) बापू के प्रत्येक आचरण से हमें सुस्पष्ट रूप से समझ में आती है। फिर क्या इसी तरह, ‘सद्गुरुतत्त्व ही सर्वप्रथम’ यह मेरी प्राथमिकता है?’ यह प्रश्न प्रश्‍न मुझे अन्तर्मुख करता है। मुझे यह उत्सव, मेरे जीवन की प्राथमिकता सुनिश्चित करना सिखाता है।

जिस रेणुकामाता ने इस परमात्मा को, सर्वप्रथम मानवी मर्यादाओं को धारण करके मानवी रूप में इस दुनियां में प्रकट किया, उस रेणुकामाता का पूजन करने के पीछे श्रद्धावानों की यही भावना होती है, श्रद्धावानों की यही प्रार्थना होती है कि ‘हे रेणुकामाता, तू हमारे जीवनविश्व में परमात्मा को प्रकट कर। इस परमात्मा का हमारे जीवन में जन्म होते ही रामराज्य आएगा ही, यह महाविष्णु हमारे जीवन में प्रकट होते ही रावणवध निश्चित है।’

बच्चे का जन्मदिन यह उस माँ का भी ‘माँ’ होने का जन्मदिन होता है। हम बच्चे को जन्मदिन की शुभकामनाएँ देते हैं, उसी तरह से माँ को भी शुभकामनाएँ देना ज़रूरी है, उसके मातृत्व को वंदन करना ज़रूरी है; क्योंकि वह माता बहुत परिश्रम उठाकर अपने बच्चे को जन्म देती है, उसकी परवरिश करती है। वह माता ही उसे इस विश्व में प्रकट करके समर्थ बनाती है।

‘आदिमाता चण्डिका हो या शिवगंगागौरीमाता हो, जिसने इस परमात्मा को हमारे जीवन में प्रकट किया, उसका ‘शक्तिरूप’ के बजाय ‘मातृरूप’ में ही पूजन करना चाहिए’ ऐसा सुस्पष्ट संदेश बापू हमें रामनवमी के इस रेणुकामाता पूजन से देते हैं। इन्हें मातृरूप में पूजना, उनकी भक्ति करना, यही मर्यादा है, ऐसी सीख बापू इसमें से हमें देते हैं।

आदिमाता चण्डिका और उसका पुत्र परमात्मा इन दोनों की भक्ति दृढ करने वाली माता शिवगंगागौरी ही है। वह स्वयं उसकी माता की, यानी आदिमाता की परम भक्त है और वही रेणुकारूप में महाविष्णु की सम्पूर्ण रूप से माता है। इसी लिए रेणुका माता के पूजन से हम, आदिमाता चण्डिका और उसका पुत्र महाविष्णु इनकी भक्ति दृढ़ करने का सामर्थ्य प्राप्त करते हैं। रामनवमी को होने वाले इस समारोह के दर्शन से हम में यह भक्ति और मर्यादा निश्चित रूप से दृढ़ होती है।

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