रेणुका-परशुराम वसुन्धरा के सर्वप्रथम माता-पुत्र

माता रेणुका  और पुत्र भगवान परशुराम
माता रेणुका  और पुत्र भगवान परशुराम

इश्वरी स्तर पर बड़ी भाभी (किरातरूद्रपत्नी) समझी जाने वाली माताशिवगंगागौरी महाविष्णु को माता सामान नहीं बल्कि माता ही है, लेकिन वही रेणुका अवतार में महाविष्णु के मानवी अवतार में भी प्रत्यक्ष माता है। इसी लिए रेणुका अवतार में माताशिवगंगागौरी का मातृत्व पूर्णत्व से अभिव्यक्त हुआ है, प्रकट हुआ है। रेणुका के रूप में इश्वरी और मानवी अवतार में एक ही समय पर वह महाविष्णु की सम्पूर्ण रूप से माता है।

‘मातृवात्सल्यविंदानम्’में हम पढ़ते हैं कि आदिमाता चण्डिका के ‘शताक्षी’ इस सौम्य शांत व वत्सल रूप का और कार्य का आख्यान दत्तात्रेय की ओर से सुनकर परशुराम को, अत्यंत प्रेम से निवाला खिलानेवाली उसकी रेणुका माता का तीव्र स्मरण होता है।

आदिमाता चण्डिका ने ही इस माता-पुत्र का अनन्यप्रेम का पवित्र रिश्ता हमारे सामने आदर्श के तौर पर रखा है। उस ने ही मातृतत्त्व के साथ रेणुका का नाम हमेश के लिए जोड़ा है। तुलसीपत्र अग्रलेख श्रृंखला में हम पढ़ते हैं कि माता शिवगंगागौरी का रेणुका इस सातवें अवतार को आदिमाता ने ‘मातेश्‍वरी/मात्रेश्‍वरी’ यह नामाभिधान दिया है और जमदग्नि का नाम ‘तपोभैरव’ है।

रेणुका ने देहत्याग करने के बाद श्रीगुरु दत्तात्रेय की कृपासे परशुराम की रेणुकामाता से जहां फिरसे भेंट हुई, वह मातारेणुका का स्थान मातापुर/ मातृपुर नाम से पहचाना जाता है। सारांश, मातृतत्त्व से, मातृत्व से रेणुका माता का नाम अटूट रूप से जुड़ा है।

रेणुका-परशुराम इन माता-पुत्र का वत्सल रिश्ता सभी दृष्टिकोण से अजरामर, एकमेवाद्वितीय और सर्वोच्च है। इस संबंध में मुद्दों की समीक्षा हम संक्षिप्त में करते हैं।

1) इश्वरी रिश्ते से माता-पुत्र शिवगंगागौरी-महाविष्णु यह रेणुका-परशुराम इन मानवी अवतार में वसुंधरा पर सर्वप्रथम माता-पुत्र के रूप में प्रकट होते हैं।

2) रेणुका ही महाविष्णु परशुराम को श्रीगुरु दत्तात्रेयों की चरणों पर डालती है। इश्वरी रिश्ते से महाविष्णु का सबसे बड़ा भाई और सद्गुरु श्रीगुरु दत्तात्रेय महाविष्णु के परशुराम इस अवतार में प्रत्यक्ष मानवी सद्गुरु हैं।

विश्वकी गुरु और शिष्य की सर्वोच्च जोडी इसी अवतार में हमारे सामने आती है और इनको जोड़ने वाली माता रेणुका है। (‘मातृवात्सल्यविंदानम्’ प्रकट हुआ है वह श्रीगुरु दत्तात्रेय और परशुराम के संवादसे ही)

3) पिता जमदग्नि की ओर से मतलब किरातरुद्र की ओर से महाविष्णु परशुराम-रूप में विद्या ग्रहण करता है और रेणुकामाता की तरफ से उसे ‘आदितिविद्या’ प्राप्त होती है।

4) श्रीगुरु दत्तात्रेय परशुराम को, रेणुका ने देहत्याग करने के बाद परशुराम की माता से मिलने की उत्कट इच्छा अनुसार रेणुका की फिर से भेट करवाते हैं। मातृप्रेमी सद्गुरुने मातृप्रेमी शिष्य की उसकी माता से उसने देहत्याग करने के कुछ सालों बाद इस प्रकार से भेंट करवाना यह अलौकिक, प्रेमशिखर घटना है।

5) स्वयं परशुरामने रेणुका की मूर्तिमातृ प्रेम से बनाई है। ‘रेणुका’ यही माता शिवगंगागौरी की प्रथम बनाई मूर्ती, वह भी प्रत्यक्ष महाविष्णु के हाथों से, उसके पुत्र के हाथों से।
(‘मातृवात्सल्यविन्दानम्’ में आदिमाता चण्डिका गायत्री की पंचमुखी आकृति परशुरामने श्रीगुरु दत्तात्रेयों की आज्ञा से, उनकी उपस्थिति में रेखांकित करने की कथा हम पढ़ रहे हैं।)

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